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Electoral Bonds: Supreme Court ने किया Electoral Bonds को असंवैधानिक घोषित, SBI को तीन हफ्तों में देनी होगी रिपोर्ट, जानिए विषय के बारे में विस्तार से..

Electoral Bonds: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 15 फरवरी, 2024 को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक करार दिया है। यह योजना 2017 में शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य राजनीतिक दलों को पारदर्शी तरीके से चंदा देना आसान बनाना था। हालांकि, इस योजना की शुरुआत से ही इसकी आलोचना हो रही थी, खासकर इसलिए क्योंकि इससे दानदाताओं की जानकारी गुप्त रहती थी। सुप्रीम कोर्ट के कहा कि Electoral Bonds योजना असंवैधानिक है, इसलिए इस पर रोक लगाई जा रही है। जानिए मामलें की पूरी जानकारी….

Electoral Bonds 
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पाँच जजों की सांविधानिक पीठ ने सुनाया फैसला  

Electoral Bonds मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है जिसमें इसे असंवैधानिक घोषित किया गया है। पाँच जजों की बेंच ने यह फैसला सुनाया जिसमें चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले पाँच सालों के चंदे का हिसाब मांगा है। अब यह सूचित करना अनिवार्य हो गया है कि पिछले पाँच सालों में किस पार्टी को कितना चन्दा दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि उद्योगों को sbi के जानकारी जुटा कर सारी जानकारी अपनी वेबसाइट पर साझा करनी होगी। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उद्योग जगत के लिए एक बड़ी चुनौती मानी जा रही है। बता दें कि Electoral Bonds के खिलाफ याचिकाएं दायर की गई थी जिसके खिलाफ यह फैसला सुनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने बताया है कि सरकार हो अन्य विकल्प पर विचार करना होगा।

Electoral Bonds
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क्या थी Electoral Bonds योजना?

Electoral Bonds योजना को  2017 में finance bill के जरिए पेश किया गया था। 29 जनवरी 2018 को इसका नोटिफिकेशन जारी किया गया था। असोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए कहा गया कि  इसका इस्तेमाल कॉर्पोरेट द्वारा बड़े पैमाने पर किया जाता है। इस योजना के मुताबिक बॉन्ड को देश के किसी भी नागरिक या देश की ईकाई द्वारा खरीदा जा सकता था। यह बॉन्ड कोई अकेला व्यक्ति या समूह खरीद सकता था। चुनावी बॉन्ड पाने के नियमानुसार जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29(ए) के तहत रेजिस्टर्ड political parties और loksabha या vidhansabha के चुनावों में न्यूनतम एक प्रतिशत वोट पाने वाले दल Electoral Bonds प्राप्त कर सकते थे। Electoral Bonds को किसी आधिकारिक राजनीतिक पार्टी द्वारा अधिकृत बैंक अकाउंट में प्राप्त किया जा सकता है।

क्या रहा है पिछले सालों का रिकार्ड?

सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसले में चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। इसके पीछे का कारण बताया जा रहा है कि इससे चंदे का हिसाब किताब मिलता रहेगा। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 2018 से लेकर 2023 तक राजनीतिक दलों को प्राप्त कुल Electoral Bond  रुपयों में BJP को 6566.12 करोड़, कॉंग्रेस को 1123.31 करोड़, एआइटीसी 1092.98 करोड़, डीएमके को 616.5 करोड़ और AAP को 94.28 करोड़ electoral bond के रूप में प्राप्त हुए।

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RTI के खिलाफ Electoral Bonds 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम में गोपनीय का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत सूचना का अधिकार कानून का उल्लंघन करता है। अब शीर्ष अदालत के फैसले के बाद पब्लिक को भी पता होगा कि किसने, किस पार्टी की फंडिंग की है। चार लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर चुनावी बॉन्ड स्कीम की वैधता को चुनौती दी थी। इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा फैसला दिया है जिसका दूरगामी असर हो सकता है, खासकर लोकसभा चुनावों के मद्देनजर पार्टियों को इससे खतरा हो सकता है। कॉंग्रेस की  नेता जया ठाकुर, कम्युनिस्ट पार्टी और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रेफॉर्म्स समेत चार लोगों ने याचिकाएं दाखिल की थी। उनका मानना है कि चुनावी बॉन्ड के कारण गुप्त फंडिंग में पारदर्शिता को प्रभावित करती है। यह सुनवाई पिछले साल 31 अक्टूबर को शुरू की गई थी।

 

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